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Looking for coupon codes? See ongoing discountsशारिक़ कैफ़ी की शाइ’री में, आदमी का इस दुनिया में होना, अपने जिस्म-ओ-जान, चेतना, जज़्बों और महसूस करने की तमामतर ताक़त के साथ, एक घर, एक ख़ानदान, एक मुहल्ले, उसके गली-कूचों और एक सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल में होना, और दिल-ओ-दिमाग़ के छोटे-छोटे वाक़िआ’त से बनते-बिगड़ते वाक़िआ’त में, और उनके माध्यम से, होना है। ये वाक़िआ’ती तख़य्युल (घटना आधारित कल्पना) शारिक़ कैफ़ी की बहुत बड़ी ताक़त और पहचान है, और इसमें उनका कोई सानी नहीं। इसकी बदौलत उर्दू की इ’श्क़िया शाइ’री बिलकुल नई, अनोखी, ज़हनी, जज़्बाती और नफ़्सियाती (मनोवैज्ञानिक) बारीकियों से परिचित हुई है, जो उर्दू शाइ’री को उनकी बहुत ख़ास देन है।
शारिक़ का सफ़र अब जिस मर्हले (चरण) में है, वहाँ तक बेरहम हक़ीक़त-पसन्दी (यथार्थ-बोध) की लय तेज़तर होती जा रही है। ये भाव उनकी इ’श्क़ियात शाइ’री में भी जारी है, और ज़िन्दगी और दुनिया के उनके अनुभवों में भी।
ज़िन्दगी, दुनिया और कायनात के बारे में शारिक़ कैफ़ी के तज्रबात में अब बहुत फैलाव और व्यापकता आ गई है। यहाँ हर चीज़, हर शक्ल और हरकत को हर ख़याल और धारणा का उलट-पुलट करके देखा जा रहा है।
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Weight | 200 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 1 cm |
Book Author | |
Publisher | |
Language | |
Pages | 139 |
Binding | |
Condition |
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