कटोरा भर खूनबाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन नई दिल्ली में शारदा प्रकाशन द्वारा सन् १९८४ ई॰ में किया गया था।
""लोग कहते हैं कि 'नेकी का बदला नेक और बदी का बदला बद से मिलता है' मगर नहीं, देखो, आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाहता हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दीवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह सकेगा कि बदी करने वाला सुख नहीं भोग सकता या अच्छे आदमियों को दुःख नहीं मिलता? बस मुझे अपना कलेजा मजबूत करके रखना चाहिये, कहीं ऐसा न हो कि उसकी खूबसूरती और मीठी-मीठी बातें मेरी हिम्मत···(रुक कर) देखो, कोई आता है!"..."(पूरा पढ़ें)
आग और धुआंचतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित उपन्यास है। इसका प्रकाशन "प्रभात प्रकाशन", (दिल्ली) द्वारा १९७५ ई॰ में किया गया।
"इंगलैंड में आक्सफोर्डशायर के अन्तर्गत चर्चिल नामक स्थान में सन् १७३२ ईस्वी की ६ दिसम्बर को एक ग्रामीण गिर्जाघर वाले पादरी के घर में एक ऐसे बालक ने जन्म लिया जिसने आगे चलकर भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस बालक का नाम वारेन हेस्टिंग्स पड़ा। बालक के पिता पिनासटन यद्यपि पादरी थे, परन्तु उन्होंने हैस्टर वाटिन नामक एक कोमलांगी कन्या से प्रेम-प्रसंग में विवाह कर लिया। उससे उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए। दूसरे प्रसव के बाद बीमार होने पर उसकी मृत्यु हो गई। पिनासटन दोनों पुत्रों को अपने पिता की देख-रेख में छोड़कर वहां से चले गए और कुछ दिन बाद दूसरा विवाह कर वेस्ट-इन्डीज में पादरी बनकर जीवनयापन करने लगे।"...(पूरा पढ़ें)
"ये गुफा-मन्दिर पर्वत काटकर उसी की पार्वतीय चट्टानों में, भीतर ही भीतर, गढे गये हैं। इनको बनाने मे बाहर से ईट, पत्थर लाकर नहीं लगाया गया। पहाड़ों में से एक छोटी सी पटिया काटकर निकालने मे कितना भगीरथ प्रयत्न करना पड़ता है; फिर उसको काटकर उसके भीतर मन्दिर खड़ा कर देना कितने कौशल, कितने यत्न और कितने श्रम का काम है, यह कहने की आवश्यकता नहीं। १ से लेकर ९ नम्बर तक के वौद्ध मन्दिरों मे अनेक मनोहर-मनोहर मूर्तियाँ हैं। कही अवलोकितेश्वर बुद्ध की प्रतिमा है, कही पद्मपाणि की, कही अक्षोभ्य की, और कहीं अमिताभ की। तारा, सरस्वती और मञ्जु श्री आदि शक्तियों की मूर्तियाँ भी ठौर-ठौर पर हैं, उनकी सेवा विद्याधर कर रहे हैं। इन मूर्तियों की बनावट इतनी अच्छी और इतनी निर्दोष है कि किसी-किसी को, इस समय भी, इन्हें देखकर इनके सजीव होने की शङ्का होती है। एक हाथ में माला, दूसरे मे कमल- पुष्प, कन्धे में मृग-चर्म लिये हुए अभय और धर्म-चक्र-मुद्रा में ध्यानस्थ बुद्ध की मूर्तियों को देखकर मन मे अपूर्व श्रद्धा और भक्ति का उन्मेष होता है।
..."([[प्राचीन चिह्न/यलोरा के गुफा-मन्दिर
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